This is a rap song dedicated to someone who betrayed at the eleventh hour.
Download Jailkhana
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Size: 2.97 Megabytes
Format: MP3
Name: Jailkhana
Album: Jailkhana
O. S.s: Many
Origin: India
Author: Param Siddharth
Cost: 0.00 Rs.
Copyright: © Param Siddharth 2019
Devices: Many
Length: 3 minutes and 29 seconds
Genre: Hip-Hop
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Name: Jailkhana
Album: Jailkhana
O. S.s: Many
Origin: India
Author: Param Siddharth
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Copyright: © Param Siddharth 2019
Devices: Many
Length: 3 minutes and 29 seconds
Genre: Hip-Hop
Lyrics (Hindi):
रहा बेख़ौफ़, नहीं डरता था किसी से भी जब मेरे साथ था तू ।
खाना भी जब भूल गया, तब मेरे मन को याद था तू ।
सर्दी की ज्यों आई ऋतु, जब कोहरे में सब ढक-सा गया,
त्यों मैं तेरे पास गया, दिल की धक-धक में बहक-सा गया ।
मुझे पता था तू है संग तो कोई नहीं है फ़िक्र मुझे ।
सोचा मैत्री के वचनों और वफ़ा का याद है ज़िक्र तुझे ।
स्नेहपूर्ण व्यवहार से थी मेरे दिल की फ़रियाद तुझे ।
तेरा साथ, दो पल की बात, बस और क्या चाहिए था मुझे ?
झूठी आशा लेकर नयनों में आया तेरे पास था मैं,
एक-एक क़तरा उसका इन अश्कों में मैं बहा गया ।
तेरे शरण की थी मुझको जब सबसे अधिक आवश्यकता,
तभी रास्ता मोड़ तू मुझको पीठ दिखाकर चला गया ।
साथ नहीं दे सकता तो कम-से-कम बोल तो सकता था ।
मुझ अंधे बेडंडे को पगडंडी पर क्यों छोड़ गया ?
मेरी अवचेतन शक्ति के द्वार खोल तो सकता था ।
जानबूझ हर सूझबूझ से आए मुसीबत खिसक गया ।
है परम भी पुतला मिट्टी का, अग्नि में क्यों झकझोर दिया ?
बस, बहुत हुआ, अब और नहीं । दिल मेरा तूने तोड़ दिया ।
अब भी न जो अपनी भूल दिखी तुझे, कुछ भी नहीं मैं बोलूँगा ।
बहुत किया बकवाद, माफ़ करना, अब मुँह नहीं खोलूँगा ।
जाग रात-दिन पूछ-पूछ ख़ुद से मैंने पहचाना है
कि इतना सब दुःख झेलकर ही मैंने ख़ुश रहना जाना है ।
ले जा अपने अल्फ़ाज़ साथ अपनी बेवफ़ा निगाहों के
क्योंकि अब मेरे पास नहीं कुछ, कोई मध्य न बाहों के ।
सहसा सहकर यह तेरे सितम, अपना महत्त्व मैं जान गया ।
चल चतुरमुखी, जो चाल चली, क्या ख़ूब ! तुझे मैं मान गया ।
उलझ-उलझ इस भूलभुलैया में, आख़िर मैं सुलझ गया ।
धीरे-धीरे मैं अपने जीवन का मतलब समझ गया ।
इतने वर्षों के तजुर्बे से दुनिया को जाना है
जितने झूठे वादों से बना यह जेलख़ाना है ।
खाना भी जब भूल गया, तब मेरे मन को याद था तू ।
सर्दी की ज्यों आई ऋतु, जब कोहरे में सब ढक-सा गया,
त्यों मैं तेरे पास गया, दिल की धक-धक में बहक-सा गया ।
मुझे पता था तू है संग तो कोई नहीं है फ़िक्र मुझे ।
सोचा मैत्री के वचनों और वफ़ा का याद है ज़िक्र तुझे ।
स्नेहपूर्ण व्यवहार से थी मेरे दिल की फ़रियाद तुझे ।
तेरा साथ, दो पल की बात, बस और क्या चाहिए था मुझे ?
झूठी आशा लेकर नयनों में आया तेरे पास था मैं,
एक-एक क़तरा उसका इन अश्कों में मैं बहा गया ।
तेरे शरण की थी मुझको जब सबसे अधिक आवश्यकता,
तभी रास्ता मोड़ तू मुझको पीठ दिखाकर चला गया ।
साथ नहीं दे सकता तो कम-से-कम बोल तो सकता था ।
मुझ अंधे बेडंडे को पगडंडी पर क्यों छोड़ गया ?
मेरी अवचेतन शक्ति के द्वार खोल तो सकता था ।
जानबूझ हर सूझबूझ से आए मुसीबत खिसक गया ।
है परम भी पुतला मिट्टी का, अग्नि में क्यों झकझोर दिया ?
बस, बहुत हुआ, अब और नहीं । दिल मेरा तूने तोड़ दिया ।
अब भी न जो अपनी भूल दिखी तुझे, कुछ भी नहीं मैं बोलूँगा ।
बहुत किया बकवाद, माफ़ करना, अब मुँह नहीं खोलूँगा ।
जाग रात-दिन पूछ-पूछ ख़ुद से मैंने पहचाना है
कि इतना सब दुःख झेलकर ही मैंने ख़ुश रहना जाना है ।
ले जा अपने अल्फ़ाज़ साथ अपनी बेवफ़ा निगाहों के
क्योंकि अब मेरे पास नहीं कुछ, कोई मध्य न बाहों के ।
सहसा सहकर यह तेरे सितम, अपना महत्त्व मैं जान गया ।
चल चतुरमुखी, जो चाल चली, क्या ख़ूब ! तुझे मैं मान गया ।
उलझ-उलझ इस भूलभुलैया में, आख़िर मैं सुलझ गया ।
धीरे-धीरे मैं अपने जीवन का मतलब समझ गया ।
इतने वर्षों के तजुर्बे से दुनिया को जाना है
जितने झूठे वादों से बना यह जेलख़ाना है ।