This is the first Hindi poem I have written.
साथ रहने तक कोई जुदा नहीं होता ।
लुफ़्त उठाने तक कोई फ़िदा नहीं होता ॥ शेर ॥
जो इंसान न दे अच्छे का साथ,
समझ लो, उसके अंदर कोई ख़ुदा नहीं होता ॥ शेर ॥
Here's the poem:
ख़ुदा ने इंसानों को भेजा,
किंतु उनमें 'भेजा' (मस्तिष्क) न भेजा ।
इंसानों ने किया प्रणाम,
"चलो रखें अब अपने नाम" ।
रखे नाम आदम और ईव,
उग आई जीवन की नींव ।
"अरे करो तुम अपना काम,
वरना होग काम तमाम" ।
राक्षस की यह बात सुनी ।
पापों की सलवार बुनी ।
मूर्ख की माफ़िक काम किया ।
जादुई फल का नाम सुना ।
तभी याद आए वे दादा
कभी किया था जिनसे वादा ।
"माफ़ करो मुझको ऐ बाबा" ।
ईव ने फिर उस फल को दाबा ।
पूछा पेड़ से, "क्या है दाम ?
जल्दी बोलो करूँ मैं काम" ।
कहा, "इसका कोई दाम नहीं,
किंतु इसे खाना तेरा काम नहीं" ।
"इसकी बात सुनो मत यार",
कहती थी ईव बार-बार ।
ईव ने फिर उस फल को खाया ।
बाद में आदम को भी खिलाया ।
खोपड़ी में फिर 'भेजा' आया ।
यही तो उनके मन को भाया ।
अल्लाह को जब लगी ख़बर,
कहा, "थे दोनों अच्छे मगर
नहीं करूँगा उनको माफ़ ।
अभी हूँ करता उनको साफ़" ।
फेंक दिया धरती पर उनको
पाप लग गया था तब जिनको ।
पाप को तब उन्होंने बढ़ाया ।
पृथ्वी का नाम मिट्टी में मिलाया ।
हम उसी धरती पर रहते हैं ।
पापों की नदी में बहते हैं ।
ख़ुदा का कारण भी तुम जानो ।
उनकी बात को अब तुम मानो ।
यही सोच भेजा धरती पर
सुखी रहोगे तब तुम घर-घर ।
उनकी ये मजबूरी थी,
किंतु ये इच्छा पूरी थी
कि तुम रहो सुखी हर पल ।
नहीं बनाओगे तुम दल ।
नहीं करोगे आपस में झगड़े
जिसमें हों हथियार तगड़े,
लेकिन हम ऐसे ही होते हैं ।
सारे मज़हब रोते हैं ।
"ईश्वर सच्चा, अल्लाह सच्चा ।
वाहेगुरू, मसीह है अच्छा",
यही सभी दुनिया में बकते ।
साथ में मिलकर रह नहीं सकते ।
इंसान एक नहीं बना,
मगर ज़रा करो कल्पना ।
बीज छोटा-सा होता है ।
उससे अंकुर उगता है ।
पेड़ उगता है लद-लद ।
बन जाता है बरगद ।
आदम और ईव ने इसी तरह
हमें किया पैदा जगह-जगह ।
हम सब हैं भाई-बहन
जो करें संग रहन-सहन ।
तो फिर दुनिया बदलेगी ।
हम सबकी सुन लेगी ।
इसीलिये साथ रहो ।
"हम एक हैं", साथ कहो ।
साथ रहने तक कोई जुदा नहीं होता ।
लुफ़्त उठाने तक कोई फ़िदा नहीं होता ॥ शेर ॥
जो इंसान न दे अच्छे का साथ,
समझ लो, उसके अंदर कोई ख़ुदा नहीं होता ॥ शेर ॥
Here's the poem:
ख़ुदा ने इंसानों को भेजा,
किंतु उनमें 'भेजा' (मस्तिष्क) न भेजा ।
इंसानों ने किया प्रणाम,
"चलो रखें अब अपने नाम" ।
रखे नाम आदम और ईव,
उग आई जीवन की नींव ।
"अरे करो तुम अपना काम,
वरना होग काम तमाम" ।
राक्षस की यह बात सुनी ।
पापों की सलवार बुनी ।
मूर्ख की माफ़िक काम किया ।
जादुई फल का नाम सुना ।
तभी याद आए वे दादा
कभी किया था जिनसे वादा ।
"माफ़ करो मुझको ऐ बाबा" ।
ईव ने फिर उस फल को दाबा ।
पूछा पेड़ से, "क्या है दाम ?
जल्दी बोलो करूँ मैं काम" ।
कहा, "इसका कोई दाम नहीं,
किंतु इसे खाना तेरा काम नहीं" ।
"इसकी बात सुनो मत यार",
कहती थी ईव बार-बार ।
ईव ने फिर उस फल को खाया ।
बाद में आदम को भी खिलाया ।
खोपड़ी में फिर 'भेजा' आया ।
यही तो उनके मन को भाया ।
अल्लाह को जब लगी ख़बर,
कहा, "थे दोनों अच्छे मगर
नहीं करूँगा उनको माफ़ ।
अभी हूँ करता उनको साफ़" ।
फेंक दिया धरती पर उनको
पाप लग गया था तब जिनको ।
पाप को तब उन्होंने बढ़ाया ।
पृथ्वी का नाम मिट्टी में मिलाया ।
हम उसी धरती पर रहते हैं ।
पापों की नदी में बहते हैं ।
ख़ुदा का कारण भी तुम जानो ।
उनकी बात को अब तुम मानो ।
यही सोच भेजा धरती पर
सुखी रहोगे तब तुम घर-घर ।
उनकी ये मजबूरी थी,
किंतु ये इच्छा पूरी थी
कि तुम रहो सुखी हर पल ।
नहीं बनाओगे तुम दल ।
नहीं करोगे आपस में झगड़े
जिसमें हों हथियार तगड़े,
लेकिन हम ऐसे ही होते हैं ।
सारे मज़हब रोते हैं ।
"ईश्वर सच्चा, अल्लाह सच्चा ।
वाहेगुरू, मसीह है अच्छा",
यही सभी दुनिया में बकते ।
साथ में मिलकर रह नहीं सकते ।
इंसान एक नहीं बना,
मगर ज़रा करो कल्पना ।
बीज छोटा-सा होता है ।
उससे अंकुर उगता है ।
पेड़ उगता है लद-लद ।
बन जाता है बरगद ।
आदम और ईव ने इसी तरह
हमें किया पैदा जगह-जगह ।
हम सब हैं भाई-बहन
जो करें संग रहन-सहन ।
तो फिर दुनिया बदलेगी ।
हम सबकी सुन लेगी ।
इसीलिये साथ रहो ।
"हम एक हैं", साथ कहो ।
© Param Siddharth 2013